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यं सी॒मनु॑ प्र॒वते॑व॒ द्रव॑न्तं॒ विश्वः॑ पू॒रुर्मद॑ति॒ हर्ष॑माणः। प॒ड्भिर्गृध्य॑न्तं मेध॒युं न शूरं॑ रथ॒तुरं॒ वात॑मिव॒ ध्रज॑न्तम् ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yaṁ sīm anu pravateva dravantaṁ viśvaḥ pūrur madati harṣamāṇaḥ | paḍbhir gṛdhyantam medhayuṁ na śūraṁ rathaturaṁ vātam iva dhrajantam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यम्। सी॒म्। अनु॑। प्र॒वता॑ऽइव। द्रव॑न्तम्। विश्वः॑। पू॒रुः। मद॑ति। हर्ष॑माणः। प॒ट्ऽभिः। गृध्य॑न्तम्। मे॒ध॒ऽयुम्। न। शूर॑म्। र॒थ॒ऽतुर॑म्। वात॑म्ऽइव। ध्रज॑न्तम् ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:38» मन्त्र:3 | अष्टक:3» अध्याय:7» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! (यम्) जिसको (सीम्) सब ओर से जल (प्रवतेव) नीचे स्थल से जैसे वैसे (द्रवन्तम्) जाते हुए को (अनु) पीछे (विश्वः) सब (हर्षमाणः) हर्षित होता हुआ (पूरुः) मनुष्यमात्र (मदति) आनन्दित होता है वह (मेधयुम्) हिंसा की कामना करते और (शूरम्) वीर पुरुष के (न) सदृश (ध्रजन्तम्) चलते हुए (वातमिव) वायु के सदृश (रथतुरम्) रथ के द्वारा शीघ्र चलनेवाले (पड्भिः) पैरों से (गृध्यन्तम्) अभिकाङ्क्षा करते हुए शत्रु के मारने को समर्थ होता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जिस राजा के राज्य में नीचा स्थान जल के सदृश और सब प्रकार से गुणों का पात्र एक होता है, उसके समीप योग्य पुरुष रहते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यं सीं जलं प्रवतेव द्रवन्तमनु विश्वो हर्षमाणः पूरुर्मदति स मेधयुं शूरं न ध्रजन्तं वातमिव रथतुरं पड्भिर्गृध्यन्तं शत्रुं हन्तुं प्रभवति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यम्) (सीम्) सर्वतः (अनु) (प्रवतेव) निम्नस्थलेनेव (द्रवन्तम्) (विश्वः) सर्वः (पूरुः) मनुष्यः (मदति) आनन्दति (हर्षमाणः) आनन्दितः सन् (पड्भिः) पादैः (गृध्यन्तम्) अभिकाङ्क्षमाणम् (मेधयुम्) मेधं हिंसां कामयमानम् (न) इव (शूरम्) (रथतुरम्) यो रथेन सद्यो गच्छति तम् (वातमिव) (ध्रजन्तम्) गच्छन्तम् ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । यस्य राज्ञो राष्ट्रे निम्नं स्थानं जलमिव सर्वतो गुणाधानं चेकीभवति तस्य सन्निधौ योग्याः पुरुषा निवसन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्या राजाच्या राज्यात सगळीकडून जल असलेले खालचे ठिकाण असते. तेथे योग्य पुरुषांचा निवास असतो. ॥ ३ ॥